नई दिल्ली. Indo Pakistan War 1965: भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में लड़ा गया युद्ध अब अंतिम चरणों पर था. भारतीय सेना एक के बाद एक पाकिस्तानी इलाकों में अपनी विजय पताका फहरा रही थी. पाकिस्तानी सेना के हाथों से उनके इलाके लगातार छूटते जा रहे थे. आलम यह था कि भारतीय सेना के रणबांकुरे पाकिस्तान के तमाम इलाकों में जीत का परचम फहराते चले जा रहे थे.
भारतीय सेना के इन्हीं रणबांकुरों में एक थे नायब सूबेदार राम प्रसाद छेत्री. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में नायब सूबेदार राम प्रसाद छेत्री को अद्भुत युद्ध कौशल, साहस और नेतृत्व क्षमता के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आइये, आपको बताते हैं नायब सूबेदार राम प्रसाद छेत्री की बहादुरी की वह दस्तां, जिसने इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए उनका नाम दर्ज कर दिया.
छेत्री को अखनूर सेक्टर के फीचर कब्जे का मिला था आदेश
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, गोरखा राइफल्स की एक बटालियन को अखनूर सेक्टर के पश्चिम में स्थित एक चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई थी. गोरखा राइफल्स की इसी बटालियन में राम प्रसाद छेत्री बतौर नायब सूबेदार तैनात थे.
गोली लगने के बावजूद नायब सूबेदार राम प्रसाद छेत्री रुके नहीं, वह लगातार दुश्मन की पैठ वाले ठिकाने की तरफ बढ़ते रहे. लंबी जद्दोजहद के बाद, उन्होंने उस एमएमजी के ठिकाने और दुश्मन को खोज लिया, जहां से निकली गोली ने उन्हें जख्मी किया था.
अचेत होने तक दुश्मनों से मोर्चा लेते रहे छेत्री
लगातार हो रही गोलियों की बौछार को नजरअंजाद कर आगे बढ़े और अपने अचूक निशाने से दुश्मन को मौत की नींद सुलाकर, उसकी एमएमजी को खामोश कर दिया. नायब सूबेदार राम प्रसाद छेत्री की इस साहसिक विजय के साथ इलाके को दुश्मन से मुक्त करा लिया गया था.
इस ऑपरेशन में नायब सूबेदार राम प्रसाद छेत्री के अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प को देखते हुए वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
Leave A Comment